सृष्टि की बलिवेदी सम्मुख है,
समय की ज्वाला उन्मुक्त है,
मैं अग्निदग्ध होने को तैयार हूँ,
ओ अदृश्य तुम आह्वान करो
कालचक्र गतिमान है,
जीवनधारा भी बलवान है,
मैं निमग्न होने को तैयार हूँ,
ओ अदृश्य तुम आह्वान करो
मन व्याकुल भयाक्रांत है,
संवेदना शून्य क्लांत है,
मैं स्तिथ्प्रज्ञ होने को तैयार हूँ,
ओ अदृश्य तुम आह्वान करो
जड़-चेतन सम-विषम,
धारा-व्योम दिव्य-तम,
मैं अपार्थिव होने को तैयार हूँ,
ओ अदृश्य तुम आह्वान करो
स्पंदन रथ मद्धम है,
कर्म विमुख निज मन है,
मैं परंतप होने को तैयार हूँ,
ओ अदृश्य तुम आह्वान करो
क्षितिज पार ओज आभास,
मध्य तिमिर है मृत्यु ग्रास,
मैं ग्रसित होने को तैयार हूँ,
ओ अदृश्य तुम आह्वान तो करो.
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अनिरुद्ध
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