याद है तुमको,
अपने पहले जेबख़र्च के पैसों से,
इक डायरी तुमने,
तोहफे में दी थी मुझको,
आड़े तिरछे बे-ढंगे से लफ़्ज़ों के,
अधपके से ताने-बाने,
और बनावटी एहसासों के,
कच्चे-कच्चे कुछ अफ़साने,
मैंने उसमें,
अपने तब के हालातों के नाम लिखे थे,
और जब तुमसे आखरी बार रुखसत ली,
तब उसको सीने से लगा कर,
अपनी आँखों का ख़ालीपन,
शब की तन्हाई में भीगा कर,
ज़र्रा-ज़र्रा उसमें दर्ज़ किया था,
मेरे इश्क़ में लिपटी,
और तेरे लम्स से महकी,
वो डायरी,
अब भी मेरे हालातों का हिस्सा है,
उस डायरी के सफ़हों पे अब,
राशन का हिसाब होता है.
--
अनिरुद्ध
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