कुछ ख़ूबसूरत बातों के नक्श,
जब कागज़ पे उतरे,
तब तुम्हारे नाम की इक ग़ज़ल बनी,
मीठी हंसी के काफ़ियों ने,
हर शेर मुक़म्मल किया,
और-तुम्हारी नज़रों के लम्स ने,
अशआरों को नये माने दिये,
दिन-
जो तुम्हारे तस्सवुर से रौशन हुआ,
रात चढ़ते चढ़ते तुम्हारी तारीफ़ के क़सीदे पढने लगा,
इन ग़ज़लों और क़सीदों में स्वीटो,
मुझे तुम्हारे वजूद में पनाह मिली,
किस्मतों के चराग़ जले,
और-तुम्हारे नूर ने मुझे,
एक दिन में इक ज़िन्दगी अता की.
--
अनिरुद्ध
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