घुमक्कड़ वो अब्र आसमाँ में,
सतरंगी धनुक की चादर ओढ़े,
अपनी ही धुन में मगन कहीं जा रहा था,
मैंने आवाज़ देकर रोका उसे,
और पूछा,
ये सतरंगी धनुक ओढ़े कहाँ फिरते हो,
उसने कहा मैं अब्र हूँ,
मेरा अपना कोई रंग नहीं,
मैंने गौर से देखा तो पाया,
ये रंग तो मेरी निगाहों से है,
मैं कुछ इसी उलझन में था,
की तुम्हारी चूड़ियों की खनक ने मुझे चौंका दिया,
अब्र ने हँस के अपनी राह पकड़ी,
और तब मैंने जाना,
तुम्हारी कलाईयों पे सजी सतरंगी चूड़ियों से स्वीटो,
मेरा सारा वजूद रंग हुआ है.
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अनिरुद्ध
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