चाँद के पार,
सुरमई से आसमानों पे,
तुम्हारी पलकों तले,
शोख़ मुस्कुराहटों के सितारे,
झिलमिलाते से,
एक दूसरे में ग़ुम,
सुबह के कत्थई उजालों से अनजान,
अपने वजूद को जीते हैं,
धडकनों का संगीत रचते हैं,
मद्धम होती साँसों,
और बेखुद होती नज़रों के दरमियाँ,
खुद से परे,
एक दूसरे में सिमटे से,
मिलने और बिछड़ने के अहद में बंधते हैं,
तमन्ना ये की,
वक़्त थम जाये इस मंज़र पर,
और दिल की दुआओं को आराम मिले,
तेरी नज़र के उजालों में खोते हुए,
आख़िरी सांस लें.
--
अनिरुद्ध
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