Thursday, November 8, 2012

वजूद


तुम्हारी मासूमियत के उजालों में,
मेरा वजूद साफ़ नज़र आता है,
हर जगह पैबंद लगे हैं झूठ के,
गुनाहों की गिरहें,
ख़ुद अपनी तहें उधेड़ती हैं,
मगर हर उधडती तह के साथ,
गुनाह बढ़ते से मालूम होते हैं,
अपने वजूद की गिरहों को छुपाने की खातिर,
न जाने कब तलक मैं,
अंधेरों का हाथ थामे चलता रहूँगा,
राह का पता नहीं,
मंजिल की उम्मीद नहीं,
फिर भी चला जाता हूँ,
की ज़िंदा रहने का एहसास बना रहे,
ख़ुद से लड़ता,
ख़ुद के साथ,
ख़ुद ही की तलाश में,
तुमसे दूर,
पर फिर तुम्हारी ही तरफ,
शायद कहीं,
शायद कभी,
मेरी मुझसे मुलाक़ात हो,
और मैं,
ख़ुद को अपना वजूद सौंपकर,
लौट सकूँ तुम्हारे पास,
तुम्हारी मासूमियत के उजालों में,
बिना वजूद,
की फिर मुझमें और तुममें कोई फ़र्क न रहे,
की फिर मुझे तुमसे कभी जुदा न होना पड़े मेरे अलग वजूद की वजह से.
--
अनिरुद्ध

(Inspired by movie Maachis)
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