Thursday, April 2, 2020

ख्वाबों का क्या होगा

चलो ये वादा किया
की नज़्म या ग़ज़ल कोई
जिसमें तुम्हारा ज़िक्र हो
नहीं कहूँगा

चलो ये अहद भी ठहरा
की क़िस्सा या कहानी कोई
जो अपने फ़साने सी हो
नहीं लिखूँगा

चलो ये क़सम भी ली
की समां या मंज़र कोई
जो हमारे माज़ी सा हो
नहीं देखूँगा

चलो ये भी मंज़ूर किया
की आरज़ू या तमन्ना कोई
जिनसे रिश्ता हो मेरा तुम्हारा
नहीं करूँगा

ये सब कुछ मैं कर भी लूँ मगर जानां
ये तो कहो
की जागती आँखों के वो ख़्वाब
जो तुम रोज़ देखती हो
जिनमें तामीर होते हैं मरासिम अपने
वो ख़्वाब
जो मेरे ख़ामोश इसरार
और तुम्हारे अनकहे इक़रार
को हर लम्हा दोहराते हैं
हाँ वही ख़्वाब
जिनके मुक़्क़म्मल होने की दुआ लिये
तुम्हारा वजूद
हरदम सजदे में रहता है
उन ख्वाबों का क्या होगा

कहो तो जानां
उन मासूम ख़्वाबों का क्या होगा

--
अनिरुद्ध 



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