Saturday, January 12, 2013

मेरे सपनों में आना


दीपोत्सव के दीपों से जब अँधियारा घट जाये,
बसंत की मंद हवाएं जब प्रेम-संदेसा लाये,
विरह से व्याकुल चातक को जब स्वाति नक्षत्र मिल जाये,
प्रकृति हर्षित हो कर जब सौन्दर्य छटा बिखराए,
प्रेम-सुधा से विभोर विहग
जब गाये मधुर तराना,
तब प्रियतम तुम चुपके से
मेरे सपनों में आना

होली के रंगों से जब इन्द्रधनुष बन जाये,
सुरभित से उपवन में कोयल कुहू-कुहू गाये,
पर्वत शिखरों पर जब बादल काले छाए,
बरखा की बौछारों से जब तन मन भीगा जाये,
सूनी-सूनी वादियों में
जब मौसम आ जाये सुहाना,
तब प्रियतम तुम चुपके से
मेरे सपनों में आना.
--
अनिरुद्ध
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This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.

4 comments:

  1. really beautiful lines anirudh !...love to read them and the feelings in them..keep shining my brother !

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    1. Thanx a lot bro, will try to not disappoint you :)

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