हंसी की धीमी आंच पे,
थोडा हिलाकर थोडा डुलाकर,
चुनिन्दा खयालातों का शोख रस मिलाकर,
एक कड़ाही शोरबे की तैयार की तुमने,
फिर दिल की सारी दुआओं के मसाले भूने,
और-
अपनी मुहब्बत की खुशबू से महकी,
कुछ हरी मिर्च की कतरने भी डाली,
कुछ देर यूँ ही जज़बातों के साथ,
लौ में पकाया
क्या खूब स्वाद बने हैं,
तेरे राजमा-चावल स्वीटो.
--
अनिरुद्ध
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