Monday, January 14, 2013

क़वायद


सच्चे झूठे लफ्ज़ पका कर
कच्ची पक्की बातों के कुछ
मोटे मोटे रोट पकाये
खट्टी मीठी मुस्कुराहटों से
बातों के वो रोट सजाये
और-तुम्हारे आने की ख़बरों से
रस्ते महकाए
यूँ शुरू की फिर
आँखों की जानिब रात गुज़ारने की रस्में
--
अनिरुद्ध
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