Monday, January 14, 2013

दस्तक


फिर दरवाज़े पे दस्तक हुई है
मैं जानता हूँ की आने वाला
इक ऐसा तूफ़ान है
जो आएगा और सब कुछ तबाह कर जायेगा
फिर भी कमबख्त दिल
ये उम्मीद करता है
कि शायद इस बार तुम हो
मैं दरवाज़ा खोलता हूँ
और तूफ़ान गुज़र जाता है
अपने पीछे बर्बादियों का मंज़र छोड़कर
दिल एक बार फिर नाकाम है
उम्मीदें और नाकामियां
और उनके बीच फंसा हुआ मैं
जुट जाता हूँ
सब कुछ पहले सा बनाने में
ताकि फिर एक नई दस्तक कि राह देख सकूँ
अंधेरा बढ़ने लगा है
मगर दिल ना उम्मीद नहीं है
उसे यकीं है
कि कभी न कभी तुम आओगी
और जज़्बातों पे जमी बर्फ पिघलेगी
मेरा हाथ पकड़ कर तुम
मुझे नाकामी कि इस अँधेरी दुनिया से दूर
रौशनी के उस जहाँ में ले चलोगी
जहां कभी दिल नहीं टूटेंगे
मैं जानता हूँ
कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला
टूटना दिल कि किस्मत है
वो टूटेगा ही
न तुम आओगी
न मेरा जहाँ बदलेगा
मैं ये भी जानता हूँ
कि इन्ही तूफानों में इक दिन बिखर जाऊंगा मैं
लेकिन फिर भी
मैं मजबूर हूँ
हर दस्तक पे दरवाज़ा खोलने के लिए
--
अनिरुद्ध
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