इस्मत की कहानियों में सच्चाई पूरी की पूरी होती है। आप पसंद करे या नहीं इससे कोई सरोकार इस्मत को कभी रहा ही नहीं, और यही वजह रही है की उनकी कहानियों के उनके आलोचक भी मुरीद रहे हैं। अपने ज़माने से आगे की कहानियां, जिन्हें हम आज 'प्रोग्रेसिव' कहानियां कहते हैं, 1940-1950 के दशक में भी इस्मत की ख़ासियत थी। उनकी ऐसी ही बेबाक़ कहानियों का एक संग्रह 'सॉरी मम्मी' के नाम से प्रकाशित हुआ है।
शीर्षक कहानी 'सॉरी मम्मी' कहानी है एक ऐसी एंग्लो-इंडियन महिला मिस्सेस मिच्चेल उर्फ़ मम्मी की जो की शरीफों की बस्ती में शराफ़त से लड़कियों का धंधा किया करती थी। पति के समय पूर्व देहांत से उपजी परिस्थितियों से लड़कर, हारकर, समझौता कर, पूरी नेक नियत से मम्मी यह काम करती थी। अपनी ही बनाई दुनियाँ में मशगूल मम्मी, खुद को चिर-यौवना समझती थी, और इसीलिए जब एक रात एक सुनसान गली में एक शराबी ने उनके साथ बदसलूकी करने की कोशिश की तो उनको सदमा लगा। इस बात का नहीं की उनकी इज्ज़त पर बात बन आई थी मगर इस बात का की शराबी से छीना -झपटी के दौरान जब उनकी नकली बत्तीसी गिर गयी तो वो शराबी सॉरी मम्मी बोल के भाग गया। बनावट ही सही मग़र मम्मी की दुनियाँ का सच भी वही था और इस्मत ने वो ज्यों का त्यों बयां किया।
'कल्लू की माँ' नामक कहानी में इस्मत ने बड़ी खूबी से उस दौर के समाज का विरोधाभास पेश किया है। समाज की ठुकराई एक बेसहारा औरत अपने बच्चे का पेट भरने को बड़े लोगों के घरों की जूठन धोती और ख़ुद जूठी होने से बचती। पति के गुज़र जाने के बाद से लोगों ने बुरी नियत और गालियों के सिवा उसको और उसके बच्चे को कुछ न दिया। फ़िर एक दिन जब बड़े मियाँ ने अपनी तीमारदारी से खुश हो के निकाह का प्रस्ताव रखा तो ज़मीनी सच्चाई ने उसे मजबूर कर दिया की अपने दादा की उम्र के मर्द से निकाह पढ़ ले।
महिला सम्लैंगिकता का पहला-पहल इशारा इस्मत की कहानी 'लिहाफ़' में मिलता है। ये कहानी इतनी चर्चित हुई की कुछ झूठी शान ओढ़े समाज के ठेकेदारों ने इस्मत पर अश्लीलता का मुक़दमा भी दायर कर दिया। क़ानून ने फ़ैसला इस्मत के हक़ में दिया और ज़माना इस्मत का क़ायल हो गया। उस दौर मे इस तरह के मुद्दे पर कहानी कहने का साहस इस्मत जैसी बाग़ी शाख्सियत के ही बस की बात हो सकती थी।
इस्मत ने अपनी कहानियों में ज़माने को औरतों के नज़रिए से पेश किया। रिश्ते-नाते और उनके बीच की बनावट या खालीपन कुछ भी इस्मत की निगाहों से न बच सका, फिर चाहे 'नींद' की शहनो हो या 'बहू -बेटियाँ' की मरियम और हुरमा या फिर 'नन्ही की नानी' की नानी माँ हो। सबका हाले-दिल बड़ी ही बेबाकी से पेश किया है।
शीर्षक कहानी 'सॉरी मम्मी' कहानी है एक ऐसी एंग्लो-इंडियन महिला मिस्सेस मिच्चेल उर्फ़ मम्मी की जो की शरीफों की बस्ती में शराफ़त से लड़कियों का धंधा किया करती थी। पति के समय पूर्व देहांत से उपजी परिस्थितियों से लड़कर, हारकर, समझौता कर, पूरी नेक नियत से मम्मी यह काम करती थी। अपनी ही बनाई दुनियाँ में मशगूल मम्मी, खुद को चिर-यौवना समझती थी, और इसीलिए जब एक रात एक सुनसान गली में एक शराबी ने उनके साथ बदसलूकी करने की कोशिश की तो उनको सदमा लगा। इस बात का नहीं की उनकी इज्ज़त पर बात बन आई थी मगर इस बात का की शराबी से छीना -झपटी के दौरान जब उनकी नकली बत्तीसी गिर गयी तो वो शराबी सॉरी मम्मी बोल के भाग गया। बनावट ही सही मग़र मम्मी की दुनियाँ का सच भी वही था और इस्मत ने वो ज्यों का त्यों बयां किया।
'कल्लू की माँ' नामक कहानी में इस्मत ने बड़ी खूबी से उस दौर के समाज का विरोधाभास पेश किया है। समाज की ठुकराई एक बेसहारा औरत अपने बच्चे का पेट भरने को बड़े लोगों के घरों की जूठन धोती और ख़ुद जूठी होने से बचती। पति के गुज़र जाने के बाद से लोगों ने बुरी नियत और गालियों के सिवा उसको और उसके बच्चे को कुछ न दिया। फ़िर एक दिन जब बड़े मियाँ ने अपनी तीमारदारी से खुश हो के निकाह का प्रस्ताव रखा तो ज़मीनी सच्चाई ने उसे मजबूर कर दिया की अपने दादा की उम्र के मर्द से निकाह पढ़ ले।
महिला सम्लैंगिकता का पहला-पहल इशारा इस्मत की कहानी 'लिहाफ़' में मिलता है। ये कहानी इतनी चर्चित हुई की कुछ झूठी शान ओढ़े समाज के ठेकेदारों ने इस्मत पर अश्लीलता का मुक़दमा भी दायर कर दिया। क़ानून ने फ़ैसला इस्मत के हक़ में दिया और ज़माना इस्मत का क़ायल हो गया। उस दौर मे इस तरह के मुद्दे पर कहानी कहने का साहस इस्मत जैसी बाग़ी शाख्सियत के ही बस की बात हो सकती थी।
इस्मत ने अपनी कहानियों में ज़माने को औरतों के नज़रिए से पेश किया। रिश्ते-नाते और उनके बीच की बनावट या खालीपन कुछ भी इस्मत की निगाहों से न बच सका, फिर चाहे 'नींद' की शहनो हो या 'बहू -बेटियाँ' की मरियम और हुरमा या फिर 'नन्ही की नानी' की नानी माँ हो। सबका हाले-दिल बड़ी ही बेबाकी से पेश किया है।
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