Saturday, October 27, 2012

रात रुक जाओ


काम कुछ ख़ास तो नहीं,
मगर यूँ उठ के ना जाओ,
रात की ही तो बात है,
और थोड़ी सी ही जान बाकी है,
रुक जाओ,
आसमां का छोर पकड़ लो हाथों में,
और जब बेख़बर हो चाँद,
तो हौले से झटक दो आसमां,
मुट्ठी भर सितारे तुम्हारे दामन में टूट गिरेंगे
टूटे सितारों से दामन सजाओ,
रात की ही तो बात है,
और थोड़ी सी ही जान बाकी है,
रुक जाओ,
या फिर समेट लो बाँहों में ग़म मेरे,
और जब बेदिल सी लगे ख़ुशी,
तो लोरी सुना के बहला लो उनको,
कुछ क़तरा ग़म तुम्हारी आँखों में सो पड़ेंगे,
मेरे ग़म अपनी आँखों में सुलाओ,
रात की ही तो बात है,
और थोड़ी सी ही जान बाकी है,
रुक जाओ,
ना हो तो कुछ गर्द ही हटा दो लफ़्ज़ों से,
और जब शोर सी लगने लगे ये धड़कने,
तो डूबती नब्ज़ में बाँध दो लफ़्ज़ों को,
चंद नज्में सूनी सी तुम्हारे कानों में हंस पड़ेंगी,
इन नज़्मों की हंसी को गुनगुनाओ,
रात की ही तो बात है,
और थोड़ी सी ही जान बाकी है,
रुक जाओ.
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