भूले हुए ख़्वाबों को आँखों में बसा कर आई है,
ज़िन्दगी फिर चाँद माथे पर चढ़ा कर आई है
शाहों ने बिठाये पहरे चाँद सूरज तारों पर,
शम्मा ये अंधेरों को फिर ठेंगा दिखा कर आई है
इस सुबह में रात की कालिख मिटाई जाएगी,
ये सुबह फिर रौशनी सर पे सजा कर आई है
तुम बढ़ा दो दूरियां क़दमों से मंजिल की मेरी,
हौसलों को चाहतें धड़कन बना कर आई है
लाख चाहे अब बना ले मौत का सामां कोई,
जीस्त आक़ा-ए-मौत से नज़रें मिला कर आई है
--
अनिरुद्ध
ज़िन्दगी फिर चाँद माथे पर चढ़ा कर आई है
शाहों ने बिठाये पहरे चाँद सूरज तारों पर,
शम्मा ये अंधेरों को फिर ठेंगा दिखा कर आई है
इस सुबह में रात की कालिख मिटाई जाएगी,
ये सुबह फिर रौशनी सर पे सजा कर आई है
तुम बढ़ा दो दूरियां क़दमों से मंजिल की मेरी,
हौसलों को चाहतें धड़कन बना कर आई है
लाख चाहे अब बना ले मौत का सामां कोई,
जीस्त आक़ा-ए-मौत से नज़रें मिला कर आई है
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अनिरुद्ध
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