Sunday, March 3, 2013

मसाला चाय


पूरी रात तकिये पे,
तुम्हारी महक़ अनमनी सी लेटी रही,
मगर बेख़बर नाक़,
कानों पर खर्राटे चढ़ा,
चादर ताने सोती रही,
तुम्हारी चढ़ी हुई त्योरियाँ देख कर पाजी सूरज,
आज सुबह से ही मुझे चिढ़ा रहा है,
ये सर्दी का भी हिसाब कच्चा है,
जब देखो तब बेमौसम आ कर मेरे सर पे सवार हो जाती है,
तेरी मसाला चाय का ही अब आसरा है स्वीटो,
ताकी सर्दी जाये,
नाक़ ख़बरदार रहे,
और रात भर मुझे तेरी महक़ दोनों हाथों में थामे रहे
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अनिरुद्ध

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