सुबह की मासूम आँखों से देखे थे,
ख़्वाब कई कच्चे से,
हड़बड़ी में यूँ ही मोड़ के,
तकिये के नीचे रख दिए थे सारे,
अब शाम तक कई सलवटें आ गयी हैं उनमें,
तुम आज जल्दी घर आ जाओ,
और अपनी सांसों की गर्मी उधार दे दो,
की रात भर इस्त्री कर,
इन ख़्वाबो की सारी सलवटें दूर करनी हैं
--
अनिरुद्ध
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.