चलो ये वादा किया
की नज़्म या ग़ज़ल कोई
जिसमें तुम्हारा ज़िक्र हो
नहीं कहूँगा
चलो ये अहद भी ठहरा
की क़िस्सा या कहानी कोई
जो अपने फ़साने सी हो
नहीं लिखूँगा
चलो ये क़सम भी ली
की समां या मंज़र कोई
जो हमारे माज़ी सा हो
नहीं देखूँगा
चलो ये भी मंज़ूर किया
की आरज़ू या तमन्ना कोई
जिनसे रिश्ता हो मेरा तुम्हारा
नहीं करूँगा
ये सब कुछ मैं कर भी लूँ मगर जानां
ये तो कहो
की जागती आँखों के वो ख़्वाब
जो तुम रोज़ देखती हो
जिनमें तामीर होते हैं मरासिम अपने
वो ख़्वाब
जो मेरे ख़ामोश इसरार
और तुम्हारे अनकहे इक़रार
को हर लम्हा दोहराते हैं
हाँ वही ख़्वाब
जिनके मुक़्क़म्मल होने की दुआ लिये
तुम्हारा वजूद
हरदम सजदे में रहता है
उन ख्वाबों का क्या होगा
कहो तो जानां
उन मासूम ख़्वाबों का क्या होगा
--
अनिरुद्ध
की नज़्म या ग़ज़ल कोई
जिसमें तुम्हारा ज़िक्र हो
नहीं कहूँगा
चलो ये अहद भी ठहरा
की क़िस्सा या कहानी कोई
जो अपने फ़साने सी हो
नहीं लिखूँगा
चलो ये क़सम भी ली
की समां या मंज़र कोई
जो हमारे माज़ी सा हो
नहीं देखूँगा
चलो ये भी मंज़ूर किया
की आरज़ू या तमन्ना कोई
जिनसे रिश्ता हो मेरा तुम्हारा
नहीं करूँगा
ये सब कुछ मैं कर भी लूँ मगर जानां
ये तो कहो
की जागती आँखों के वो ख़्वाब
जो तुम रोज़ देखती हो
जिनमें तामीर होते हैं मरासिम अपने
वो ख़्वाब
जो मेरे ख़ामोश इसरार
और तुम्हारे अनकहे इक़रार
को हर लम्हा दोहराते हैं
हाँ वही ख़्वाब
जिनके मुक़्क़म्मल होने की दुआ लिये
तुम्हारा वजूद
हरदम सजदे में रहता है
उन ख्वाबों का क्या होगा
कहो तो जानां
उन मासूम ख़्वाबों का क्या होगा
--
अनिरुद्ध
This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
No comments:
Post a Comment