मुख़्तसर सी आरज़ू थी मेरी
किसी दिन मेरा नाम लेकर
तुम वही इक अहद करती
एक रूमानी सी ग़ज़ल कोई
कानों में गुनगुना उठती
साँसों की थकन
आँसुंओं में रुल पड़ती
तन्हाईयाँ मेरी सारी की सारी
तुम्हारी आवाज़ में ग़ुम जाती
ज़िन्दगी तुम्हारी आँखों के नूर में
फिर झिलमिला उठती
वक़्त के इस ताने-बाने में
तुम्हारे मेरे अफ़साने का
रेशा एक छोटा सा जुड़ जाता
और ज़िन्दगी इस एक लम्हे में
पूरे माने पा लेती
मुख़्तसर सी ये आरज़ू मेरी
ग़र किसी दिन तुमने मुक़्क़मल कर दी होती...
--
अनिरुद्ध
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.
किसी दिन मेरा नाम लेकर
तुम वही इक अहद करती
एक रूमानी सी ग़ज़ल कोई
कानों में गुनगुना उठती
साँसों की थकन
आँसुंओं में रुल पड़ती
तन्हाईयाँ मेरी सारी की सारी
तुम्हारी आवाज़ में ग़ुम जाती
ज़िन्दगी तुम्हारी आँखों के नूर में
फिर झिलमिला उठती
वक़्त के इस ताने-बाने में
तुम्हारे मेरे अफ़साने का
रेशा एक छोटा सा जुड़ जाता
और ज़िन्दगी इस एक लम्हे में
पूरे माने पा लेती
मुख़्तसर सी ये आरज़ू मेरी
ग़र किसी दिन तुमने मुक़्क़मल कर दी होती...
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अनिरुद्ध
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