Saturday, March 28, 2015

गुलज़ार साहब के गीत, उनकी नज़्में या उनके अफ़साने हमेशा ही इक नया सा एहसास पैदा करते हैं.
उनका अंदाज़-ऐ-बयां उनको एक अलग मुक़ाम पे खड़ा करता है.
उनके गीतों में नज़्म बहती मिलती है, तो उनकी नज़्मों में गीत ठहरते से मिलते हैं .
और कभी-कभी यूँ भी होता है की उनके गीतों में छुपी नज़्म चुपचाप आँख बचा के निकल जाती है.
तो मेरी ये कोशिश गुलज़ार साहब के गीतों में छुपी नज़्मों को ढूंढने की है.
ये सारा कुछ जो अब मैं यहाँ लिखूंगा, वो मेरा अपना Interpretation है.
हो सकता है की आप इत्तेफ़ाक़ न रखें उससे या ये भी हो सकता है की मैंने ही समझने में भूल कर दी हो.
बुरा मत मानना,
मुझे भी बताना ताकि कुछ सटीक काम हो सके और ये कोशिश ज़ाया ना जाये.

और एक बात,
यहाँ उनके गीतों को सिलसिलेवार, आसान ज़ुबान में Translate करने का काम नहीं होगा.
उसके लिए और बहुत से Blogs हैं.
यहाँ कोशिश बस यही रहेगी की गीतों में छुपी नज़्म को आपके सामने रख सकूँ.
उम्मीद है की मैं खरा उतरूँ, और आप इसे पसंद करें.

--
अनिरुद्ध

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