Thursday, April 3, 2014

डे-लाइट सेविंग

बड़ी खुरपेंच की,
घड़ी से मिन्नतें भी की,
काँटे आगे पीछे दौड़ाये,
बड़ा आगे छोटा पीछे,
मगर वो एक घंटा जाने कहाँ गुम हुआ,
कि अब तलक मिला नहीं,
अजब हेरा-फेरी है,
अजब ये फितूर है,
जाने क्या शह है ये मुई डे-लाइट सेविंग भी.

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अनिरुद्ध 
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2 comments:

  1. Kafi gahrai hai is kavita me. Jo ja chuka wo waqt wapas nahi aata.

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