वो पथ तेरा तू पथिक उसका,
ये राह मेरी मैं मुसाफ़िर इसका,
ऊपर चम्पई सा इक टुकड़ा आकाश तेरा,
ठीक उसके बाजू में थोड़ा मटमैला फ़लक़ मेरा,
सिन्दूरी वो सूरज,
शाम ढले तेरे पथ तक उतर आता है,
मेरी राहों में,
दोपहर ढले ऊंचीं इमारतों के पीछे छुप जाता है,
सूरज की बिंदिया लगाये,
और चाँद को पहलू में छुपाये,
रात तेरे पथ की,
तुझे नींदों में ले जाती है,
स्ट्रीट-लैंप्स जलाये,
और बिजली की बत्ती पहलू में छुपाये,
रात मेरी राह की,
मुझे ख़्वाबों के पीछे दौड़ाती है,
आ ज़रा इस कॉन्ट्राडिक्शन को मुँह चिढ़ायें,
कभी तू मेरी राह चले,
कभी मैं तेरा पथ नापूँ ,
पथ तेरा कभी मेरे ख़्वाबों में पले,
राह कभी मेरी तेरी नींदों में ढले,
इक बार ही सही मगर कभी,
आ ना यार ऐसा करके देखें.
--
अनिरुद्ध
ये राह मेरी मैं मुसाफ़िर इसका,
ऊपर चम्पई सा इक टुकड़ा आकाश तेरा,
ठीक उसके बाजू में थोड़ा मटमैला फ़लक़ मेरा,
सिन्दूरी वो सूरज,
शाम ढले तेरे पथ तक उतर आता है,
मेरी राहों में,
दोपहर ढले ऊंचीं इमारतों के पीछे छुप जाता है,
सूरज की बिंदिया लगाये,
और चाँद को पहलू में छुपाये,
रात तेरे पथ की,
तुझे नींदों में ले जाती है,
स्ट्रीट-लैंप्स जलाये,
और बिजली की बत्ती पहलू में छुपाये,
रात मेरी राह की,
मुझे ख़्वाबों के पीछे दौड़ाती है,
आ ज़रा इस कॉन्ट्राडिक्शन को मुँह चिढ़ायें,
कभी तू मेरी राह चले,
कभी मैं तेरा पथ नापूँ ,
पथ तेरा कभी मेरे ख़्वाबों में पले,
राह कभी मेरी तेरी नींदों में ढले,
इक बार ही सही मगर कभी,
आ ना यार ऐसा करके देखें.
--
अनिरुद्ध
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.
awersome
ReplyDeleteBahut achi kavita hai.
ReplyDeleteThanks Anusia :)
ReplyDelete