Friday, July 12, 2019

यादों की पोटली

यादों और वादों की वही पुरानी पोटली
साफ़-सफ़ाई के दौरान फिर निकल आयी
आँखों के किनारे कहीं जमे हुये कुछ ख़्वाब
फिर तंज़ कसने लगे
उन ख़्वाबों से नज़रें चुरा कर पोटली के अंदर देखा
तो पाया की पूरनमासी का वो चाँद
जो उस पहली रात को
चुपके से हाथों में भर लिया था
रोज़ घुल-घुल के आधा रह गया है
नये रतजगों के वो गीले लाल डोरे
जो कभी तुम्हारी आँखों में रहा करते थे
उनमें सीलन आ गयी है
और साँसों की वो गर्मी
जिससे हमने ना जाने कितने ही रात और दिन पिघलाए थे
वो सर्द आहों में रोज़ ठिठुरती है
ख़ैर-
इन बातों का तुम ज़रा सा भी मलाल न करना
हाल ही के दिनों में इकट्ठा हुई
कुछ नयी यादें और कुछ नये वादे भी
इसी पुरानी पोटली में रख दिये हैं
अबकी यूँ करना
की मेरी इस पुरानी पोटली को भी
वक़्त के उसी मंज़र पर छोड़ आना
जहाँ तुम अपनी यादें और वादें छोड़ आये हो

--
अनिरुद्ध 


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