Saturday, May 30, 2015

बोसा

रात नींद में,
मुस्कुराई थी तुम,
ख़्वाब कोई देखा होगा,
मिसरी की डली सा,
आँखों का बोसा,
बड़ा मीठा सा लगा.

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अनिरुद्ध